भोजपुरी इलाका में छट्ठ पूजा के बड़ा ही महत्व बा। दीवाली के ठीक छठा दिन ही छठ पूजा होला।ई पूजा नहा खा से शुरू होखे ला। नहा खाए के दिन लौका आ आरवा चाउर के भात बनाकेदिन में खाइल जाला । दूसरा दिन बिना अन-पानी के दिनोभर छाथबरती लोगन भूखे ला लोग आ रातिखानी रोटी-खीर (गुड के )खाइल जाला । तीसरा दिन माने की पहिला अरग -पहिलका अरग के दिन छाठ्वर्ती लोगन बिना अन-जल के दिनोभर भूखे ला लोग आ शाम में नदी किनारे या तालाब किनारे नहा धोआ के डूबत सूरज भगवान के अरग देल जाला । एह घरी फल दऊरामें लेके घाट किनारे सब परिवार के साथै बैठल जाला,आदित्य बाबा से प्रार्थना कईल जाला। सूर्यास्त के साथ ही सभे या घर चल जाला लोग या फिर रात भर घाट किनारे बैठ के पूजा कईल जाला ।
दूसरा अरग-दूसरा अरग के दिन भक्त लोग सूर्योदय के जल ढ्हार के अरग देल जाला साथ में फल ,ठेकुआ, गुलौरा चर्हावल झाला। ओकरा बाद सभे कोई आदितबाबा के गोड़लग के भूखनिहार के गोड़ लाग के आशीर्वाद लिया ला। दौउरा लेके के घर जाइल जा ला.एकरा बाद भूखनिहार लोग परं करे ला ,मने की पापरा ,बजाका ,पियाजी हर तरह के चटक - मटक खाए -पिए के चीज़ रहेला।
ई पूजा के बड़ा ही महत्व बा, हर भोजपुरी या भारत के पूर्वांचल प्रदेश के लोगन के बीच ई परब न होके महा परब के रूप में मनावल जाला। अब त छट्ठ पूजा मुंबई,डेल्ही, कोल्कता जइसन महानगरो में खूब धूम-धाम से मनावल जाला। छट्ठ पूजा के महत्व अब त बिदेश में भी होखे लागल .
Thursday, September 4, 2008
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